tag:blogger.com,1999:blog-67859359808373248142024-03-13T14:23:20.851-07:00आपणी मायड़म्हनै अधिकार म्हारी बोली रोAstrologer Sidharthhttp://www.blogger.com/profile/04635473785714312107noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-6785935980837324814.post-27279566790696826072009-03-05T00:27:00.000-08:002009-03-05T00:31:10.288-08:00बीकानेर के बारे में विस्तार से जानकारीआज एक साइट देखी जिसमें बीकानेर के बारे में विशद जानकारी दी गई है। इसका लिंक है <div><br /></div><div><a href="http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/rj019.htm">http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/rj019.htm</a><br /></div><div><br /></div><div>इसमें राहुल तनेगारिया ने बीकानेर रियासतकाल और जिले का विशद वर्णन दिया है। इसके अलावा इस लिंक </div><div><br /></div><div><a href="http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/rj156.htm">http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/rj156.htm</a><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>इसके अलावा इसमें राहुल ने राजस्थान के लोकनाट्य यानि रम्मतों के बारे में भी जानकारी दी है। </div><div><br /></div><div>एक सराहनीय प्रयास। </div>Astrologer Sidharthhttp://www.blogger.com/profile/04635473785714312107noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-6785935980837324814.post-91663125316845404502009-01-18T23:44:00.001-08:002009-01-18T23:53:59.517-08:00साहित्य संगिनी की आसचईजे एक साहित्य संगिनी वा होवे कोई रंग री सार <br />हूं सिरजूं बीने वा सिरजे म्हनै <br />विपरीत शब्द भाव व्यंजना ने वा विरजे <br />मीठा बोली वा हुवै प्रियदर्शिनी <br />म्हनै चईजे एक साहित्य संगिनी वा होवे कोई रंग री सार<br /><br />क्यों चईजै ?<br /><br />म्हारी जोड़ायत भोळी सूं घणो सणेसो आयो <br />संस्कृत भाषा में सृजियो तो बोली <br />ओझा पण्डो आयो <br />हिन्दी भाषा में सृजियो तो बोली <br />चारण भाट लखीजो <br />राजस्थानी में सृजियो तो बोली <br />डाढी डूम कईजो <br /><br />ई दुखड़े सूं दुखी होय म्हारे हिवड़े मांग करी जी <br />म्हनै चईजे एक साहित्य संगिनी वा होवे कोई नैना भंजणी<br /><br /><br />आ कविता भी कविवर वैद्यराज सत्यनारायणजी व्यास सा सुणाई। <br /><br /><br />कविता का मर्म यह है कि एक साहित्यप्रेमी को तलाश है साहित्यसंगिनी की। रंग री सार का अर्थ यह है कि चौपड़ के खेल में जो गोटी रंग वाली होती है उसे पक्की गोटी कहा जाता है। यह रंग की सार जल्दी से उखड़ती नहीं है। तो ऐसी साहित्य संगिनी चाहिए जो साहित्य का सृजन भी कर सके और साहित्यकार की बात का समर्थन भी कर सके। जब अपनी जोड़ायत यानि पत्नी को संदेशा भिजवाया तो पता चला कि किसी भी भाषा में सृजन क्यों न कर लिया जाए उसे समझ में नहीं आने वाली। इसी दुख से दुखी होकर साहित्यप्रेमी कहता है मुझे चाहिए एक ऐसी संगिनी जिसे आंख की शर्म भी हो। <br /><br />मैंने पूरा भाव पेश करने का प्रयास किया है। कहीं चूक हुई हो तो विद्वजन मुझे माफ करें और सलाह देने का कष्ट करें।Astrologer Sidharthhttp://www.blogger.com/profile/04635473785714312107noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6785935980837324814.post-84589581787090338992009-01-18T00:51:00.000-08:002009-01-18T01:15:21.697-08:00भायली सीरखड़ीसीरखड़ी तूं म्हारी भायली है, सियाळे री सहेली है <br />लपट-झपट कर थारै सागे, सारी रात बितावौं <br />खाटा-मीठा सुपना देखों, किणने बात बतावों <br />मूतण री हाजत हो जावै, थर-थर कांपे काया <br />पाछा आय थांसूं मिलों तो, पाछा हो जावों न्याया <br />काती सूं फागण तक थारो, साथ घणो है आछो <br />निर्मोही आदत है म्हारी, घिर नहीं जोउं पाछौ <br />तो ही तूं नहीं होवै रीसोणी, मिले प्रेम सूं पाछी <br />माइतों रा श्राद बीतियों पाछी आवै काती <br /><br /><br />रजाई ने इंगित करती मायड़ भाषा री आ कविता वैद्यराज सत्यनारायण जी व्यास सा म्हनै सुणाई। बै ब्लॉग और साइट रा मतलब तो को समझे नीं लेकिन म्हनै बियों कयो चावै जठे छाप। मायड़ में सहज सृजन री ई प्रवृत्ति रे साथै ब्लॉग पर आपांरी मायड़ री सेवा रे रंग चढ़ावणे रो प्रयास शुरू कर चुकियो हूं, बाकी लोगां ने भी घणे मान सूं न्यौतो दे रयो हूं। आवै जिका सृजनकार सिर माथै पर। एक बार सोची कि ई कविता रो हिन्दी अर्थ भी दूं। फेर सोचियो कि दूसरे लोगां ने पढ़ण दूं। कोई कैसी तो हिन्दी में भी अनुवाद लिख देसों। पण खांटी मारवाड़ी रो जिको आनन्द है बो अनुवाद में कोनी....<br />कोई भूल चूक होवे तो माफी चाउं <br />विद्वजणों री सलाह री उडीक रैसीAstrologer Sidharthhttp://www.blogger.com/profile/04635473785714312107noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-6785935980837324814.post-24617333764155126722009-01-14T00:52:00.000-08:002009-01-14T01:05:13.162-08:00आपौंरी भाषा आपौंरा लोगलारे एक गोष्ठी हुई बीकानेर में, शबदा तणी साख, बीयरे मांय मायड़ भाषा रा कई कवि और साहित्कार भेळा हुआ। आ देखर राजी होयो कि आज जद लोग आपरी भाषा ने छोड अर आपरे टाबरों ने हिन्दी सिखावण लाग रया है जद कई लोग इसा भी है जिका लगातार राजस्थानी री सेवा ही को कर रया नी बल्कि बीनै बढ़ावौ देण खातर देस विदेस में कार्यक्रम भी कर रया है। आ बात ठीक है कि हाल राजस्थानी री खुद री कोई लिपी का नी लेकिन भाषा तो है। जिकैने आपरी भावना व्यक्त करनी है बीरे वास्ते मातृभाषा सूं बढकर कोई दूसरी भाषा का हो सके नी। <br /><br />अबै म्हारो इमैं कांई काम। ना हूं राजस्थानी रो साहित्यकार, ना कवि ना ही राजस्थानी रा नाटक करूं। सई कैउं तो घर में मारवाड़ी बोलनी और रिपोर्टिंग रै दौरान अठैरे लोगों सूं बातचीत में मारवाड़ी आवै। ना तो हूं घणे पढि़यो लिखियो हूं ना म्हनै इरो भैम। फेर तो बस बात इत्ती है कि राजस्थानी नौम सूं एक कम्युनिटी ब्लॉग शुरू कर रयो हूं। इमै बै लोग आमंत्रित है जिका इंटरनेट रै इ माध्यम ता इ भाषा री सेवा कर सके। साथै ही म्हनै ओ लागे कि हाल इंटरनेट और कम्प्यूटर ता सृजन करने वाळों री दूरी है। बीनै भी इ माध्यम ता पाटने रो प्रयास करसूं। जिका लोग इ ब्लॉग में लिखणो तो चावै लेकिन बियोने आ ठा कायनी कि कौंकर लिखीज सी। बिये लोगों ने हूं हरेक टैम उपलब्ध हूं। अगली पोस्ट तक बस इत्तो ईज... <br /><br /><br />सिद्धार्थ जोशी <br />09413156400<br />ईमेल आईडी- imjoshig@gmail.comAstrologer Sidharthhttp://www.blogger.com/profile/04635473785714312107noreply@blogger.com3